Latest News

महाराष्ट्र 2024 के विधानसभा चुनाव के दौरान इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के साथ छेड़छाड़! रंजीत कासले पूर्व पुलिस उपनिरीक्षक

रंजीत कासले, पूर्व पुलिस उपनिरीक्षक, ने महाराष्ट्र के बीड जिले में परली विधानसभा क्षेत्र में 2024 के विधानसभा चुनाव के दौरान ईवीएम छेड़छाड़ और अन्य अनियमितताओं के गंभीर आरोप लगाए।

  1. ईवीएम छेड़छाड़ का आरोप: कासले ने दावा किया कि वह परली में ईवीएम ड्यूटी पर तैनात थे, और वाल्मीक कराड ने उन्हें बताया कि ईवीएम के साथ छेड़छाड़ हो रही है, इसलिए उन्हें इससे दूर रहने को कहा गया।
  2. फर्जी मतदान: उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने फर्जी मतदान को रोका, जिसके कारण उन्हें निशाना बनाया गया।
  3. धनंजय मुंडे की नकदी जब्ती: कासले ने आरोप लगाया कि विधानसभा चुनाव के दौरान धनंजय मुंडे की नकदी जब्त की गई थी, जिसके बाद उन्हें ड्यूटी से हटा दिया गया और छुट्टी लेने का आदेश मिला।
  4. 10 लाख रुपये का लेनदेन: कासले ने दावा किया कि 21 नवंबर 2024 को संत बालूमामा कंस्ट्रक्शन कंपनी के नाम से उनके बैंक खाते में 10 लाख रुपये जमा किए गए, जिसे वे ईवीएम छेड़छाड़ से दूर रहने की रिश्वत मानते हैं।

प्रतिक्रिया और जांच

  • चुनाव आयोग का खंडन: भारत निर्वाचन आयोग और महाराष्ट्र के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने कासले के दावों को खारिज किया, यह कहते हुए कि वह चुनाव ड्यूटी पर तैनात ही नहीं थे। आयोग ने कहा कि ईवीएम प्रक्रिया सख्त प्रोटोकॉल, सीसीटीवी निगरानी, और वीवीपैट सत्यापन के तहत होती है, जो छेड़छाड़ को असंभव बनाती है।
  • कासले की गिरफ्तारी: 17 अप्रैल 2025 को कासले को झूठी जानकारी फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई, और पुलिस जांच चल रही है।
  • एनसीपी की प्रतिक्रिया: शरद पवार की एनसीपी के उम्मीदवार राजेश साहेब देशमुख ने इन आरोपों का समर्थन करते हुए कहा कि अगर कासले को 10 लाख रुपये दिए गए, तो अन्य लोगों को कितना दिया गया होगा। उन्होंने इस मामले में कोर्ट में जाने की बात कही
  • सबूतों की कमी: कासले के दावों का अभी तक कोई स्वतंत्र सत्यापन नहीं हुआ है, और उनके आरोपों को ठोस सबूतों के अभाव में विवादास्पद माना जा रहा है।
  • ईवीएम की सुरक्षा: भारत में ईवीएम स्टैंडअलोन मशीनें हैं, जो किसी नेटवर्क से जुड़ी नहीं होतीं। इनमें छेड़छाड़-रोधी तंत्र और वीवीपैट सिस्टम होता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी विश्वसनीय माना है।
  • कासले का इतिहास: कासले पहले भी सरपंच संतोष देशमुख हत्याकांड और वाल्मीक कराड के कथित एनकाउंटर के मामले में विवादास्पद दावे कर चुके हैं, जिसके चलते उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठते हैं।
  • रंजीत कासले के आरोपों के संदर्भ में यह सवाल वाजिब है कि यदि उन्होंने ईवीएम छेड़छाड़ या अन्य अनियमितताओं की जानकारी प्राप्त की, तो उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को इसकी सूचना क्यों नहीं दी। इस पर निम्नलिखित बिंदु विचारणीय हैं:
  • आरोपों की विश्वसनीयता: कासले के दावों को चुनाव आयोग और पुलिस ने खारिज किया है, यह कहते हुए कि वह चुनाव ड्यूटी पर थे ही नहीं। यदि वह ड्यूटी पर नहीं थे, तो उनके पास ऐसी जानकारी होने का दावा संदिग्ध हो जाता है। इस स्थिति में, वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित न करने का सवाल गौण हो सकता है, क्योंकि उनके दावे ही आधारहीन हो सकते हैं।
  • संभावित दबाव या डर: यदि कासले के दावे सही मानें, तो उन्होंने यह बताया कि उन्हें “ऊपर से आदेश” मिला था कि वे छुट्टी लें और ड्यूटी से हट जाएं। यह संकेत देता है कि उन्हें उच्च स्तर से दबाव का सामना करना पड़ सकता था। ऐसी स्थिति में, वे अपने वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित करने से डर सकते थे, खासकर अगर उन्हें लगता हो कि सिस्टम में भ्रष्टाचार शामिल है।
  • रिश्वत का दावा: कासले ने कहा कि उनके खाते में 10 लाख रुपये जमा किए गए, जिसे वे रिश्वत मानते हैं। यदि यह सच है, तो उन्होंने इस पैसे को स्वीकार किया और तुरंत अपने अधिकारियों को सूचित नहीं किया। यह उनके इरादों या स्थिति से समझौता करने की संभावना को दर्शाता है, जो उनकी चुप्पी का कारण हो सकता है।
  • पहले विवादों का प्रभाव: कासले का इतिहास विवादास्पद रहा है, जिसमें सरपंच हत्याकांड और अन्य मामलों में उनके दावे शामिल हैं। संभव है कि उनकी विश्वसनीयता पहले ही संदिग्ध रही हो, जिसके कारण उन्होंने औपचारिक शिकायत दर्ज करने से परहेज किया हो, यह सोचकर कि उनकी बात पर भरोसा नहीं किया जाएगा।
  • सबूतों का अभाव: कासले ने अपने आरोपों के समर्थन में कोई ठोस सबूत (जैसे दस्तावेज, रिकॉर्डिंग, या गवाह) पेश नहीं किए। बिना सबूत के वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित करना उनके लिए जोखिम भरा हो सकता था, क्योंकि इससे उनकी नौकरी या विश्वसनीयता पर और सवाल उठ सकते थे।
  • बाद में सार्वजनिक बयान: कासले ने यह बातें सार्वजनिक रूप से (मीडिया के सामने) कही, न कि आधिकारिक शिकायत के रूप में। यह संकेत दे सकता है कि उनका मकसद व्यक्तिगत लाभ, बदला, या किसी राजनीतिक एजेंडे को बढ़ावा देना था, न कि सिस्टम के भीतर सुधार लाना।

रिपोर्ट : सुरेंद्र कुमार

Share the Post:
Administrator
Posts: 298
error: Content is protected !!